देवभूमि उत्तराखंड - श्री मनोज कामदेव जी की उत्कृष्ट रचना



देवभूमि उत्तराखंड - इस पुस्तक का विमोचन नई दिल्ली के हिन्दी भवन के संगोष्ठी सभागार में 14 अप्रैल, 2017 को सम्पन्न हुआ। पुस्तक का प्रकाशन सन्मति पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स द्वारा किया गया। 96 पृष्ठों की पुस्तक की छपाई आकर्षक है।

   

यह पुस्तक मनोज कामदेव जी का शोध कार्य है ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा। भारत देश की देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड राज्य की पृष्ठभूमि, लोगों के रहन-सहन एवं खानपान पर विशेष प्रस्तुति लेखक कामदेव जी ने की है। 


केदारनाथ धाम


अन्य राज्यों के लोग उत्तराखंड को भले ही गरीब पृष्ठभूमि का प्रांत कहकर टाल देते हैं, परंतु दक्षिण भारत के चार राज्य - आंध्र प्रदेश, कर्नाटका, तमिल नाड व केरल तथा मध्य भारत के गुजरात व महाराष्ट्र के लोग इस प्रांत की भूमि की पूजा श्रद्धा से करते हैं। यहाँ का एक ग्लास पानी पीने के लिए इन प्रान्तों के लोग तरसते हैं। 

उत्तराखंड के दर्शन करने के लिए लोग तो भारत के हर कोने से आते हैं, परंतु धन के अभाव से या अपने रोजगार के कारण कई लोगों का उत्तराखंड देखने का  सपना, सपना बनकर ही रह जाता है। ऐसे लोगों को यदि लेखक कामदेव की पुस्तक देवभूमि उत्तराखंड पढ़ने को मिल जाए तो उनके लिए उत्तराखंड का आधा दर्शन हो गया, ऐसा समझना चाहिए।

मेरी उत्तराखंड यात्रा 

मुझे भी 25 अप्रैल, 2015 को उत्तराखंड के घुड़दौड़ी क्षेत्र में जी.बी. पंत इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने अपने कॉलेज में अतिथि वक्ता के तौर पर भाषण करने के लिए बुलाया था। देहरादून के जौली ग्रांट एयरपोर्ट पर उतरने के पश्चात कार में बैठकर जी.बी. पंत इंजीनियरिंग कॉलेज तक की 124 किलोमीटर  की यात्रा से ऐसी अनुभूति हो रही थी जैसे स्वर्गलोक के दर्शन हो रहे हों। 


चार धाम


ऊंचे-ऊंचे पहाड़, चारों तरफ हरियाली, लबालब पानी से भरी हुईं तेज़ गति से बहती नदियां, यह सब देखकर मुझे हमराज़ फिल्म का गीत याद आ रहा था – नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले। वहाँ एक दिन गेस्ट हाउस में ठहरने के पश्चात वापसी यात्रा में भी फिर वही सुखानूभूति हुई।

इतनी सुंदर जगह परंतु उत्तराखंड के आर्थिक परिस्थिति से गरीब लोगों को अपनी स्वर्ग जैसी धरती छोड़कर मात्र रोज़गार के लिए पड़ोस के प्रांत में जाना पड़ता है। परंतु वहाँ के लोगों का धार्मिक एवं स्वाभाविक रुझान देखकर ऐसा लगता है जैसे इन्हें किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं है, यह अपने आप में बहुत धनी हैं।

उत्तराखंड की पृष्ठभूमि

लेखक कामदेव ने अपनी पुस्तक में बहुत सारी जानकारियां दी हैं जैसे कि उत्तराखंड के दो भाग हैं - कुमाऊँ व गढ़वाल। कुमाऊँ क्षेत्र में कम से कम दस प्रमुख भाषाएँ हैं। छह कुमाऊँ संभाग हैं – अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, उधम सिंह नगर, पिथौरागढ़ और चंपावत। इसी तरह ईष्ट देवताओं के नाम, खानपान व व्यंजन, मुख्य मिठाइयाँ, त्योहार व मेले, लोगों का रहन-सहन, वेषभूषा, लोक नृत्य, प्रमुख वाद्ययंत्र आदि जानकारियाँ पुस्तक में सम्मिलित की गयी हैं। 

इसी तरह दूसरे भाग गढ़वाल के प्रमुख हिमशिखर, प्रमुख हिमनदियां, झीलें, हवाई अड्डे, रेल्वे स्टेशन, बस अड्डे, आदि-आदि। उत्तराखंड के चार धाम हैं यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ।


केदारनाथ


फिल्म उद्योग का उत्तराखंड के प्रति आकर्षण

गंगोत्री व यमुनोत्री को तो सिनेमा के माध्यम से देश के करोड़ों लोगों ने देखा होगा और मनमोहक सौन्दर्य का आनंद उठाया होगा। क्योंकि 1984 में फिल्म निर्माता राजकपूर की फिल्म राम तेरी गंगा मैली रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म की शूटिंग हरिद्वार से लेकर हार्शिल व गंगोत्री तक हुई है। राजकपूर ने अपने कैमरे द्वारा सम्पूर्ण उत्तराखंड का दृश्य इस फिल्म में दर्शाया है। इस फिल्म की कहानी के दो पहलू थे - एक गंगाजी के पानी की सफाई और दूसरा एक पहाड़ी लड़की गंगा (मंदाकिनी) की शहर के लड़के के साथ प्रेम कहानी। 

राजकपूर ने इस फिल्म के माध्यम से भारत देश के लोगों का उत्तराखंड दर्शन करवाया। फिल्मी दर्शकों ने एक बार नहीं, पाँच-पाँच बार यह फिल्म देखी है और उसके बाद उत्तराखंड व हरिद्वार देखने का मन बना लिया। एक तरफ फिल्म की रात-दिन प्रशंसा हो रही थी तथा दूसरी तरफ उत्तराखंड की धरती पर यात्रियों की संख्या बढ़ रही थी। 

लेखक कामदेव ने उत्तराखंड के दर्शनीय पर्यटन स्थलों का इस तरह वर्णन किया है कि  फिर एक बार उस ओर पैर निकालने की इच्छा मन में जागृत होती है। 

किसी भी व्यक्ति द्वारा पुस्तकें लिखना व उसे प्रकाशित करना या करवाना अपने आप में बड़ी उपलब्धी है। लेखक बनने का मन तो सारे ही बना लेते हैं परंतु पुस्तक छपकर हाथ में दिखाई देना, यह एक मकान बनाने के बराबर है। श्री मनोज कामदेव को मेरी शुभकामनाएँ ! लिखते रहिए और प्रकाशित करते रहिए। 

रचनाकार का परिचय

श्री मनोज कामदेव का जन्म 30 अक्टूबर, 1973 को गाँव खैराकोट, उत्तराखंड में हुआ। उनकी शिक्षा भगत सिंह कॉलेज, दिल्ली से हुई है। वर्तमान में डी.आर.डी.ओ. में वरिष्ठ प्रशासनिक सहायक के पद पर कार्यरत हैं। उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं जिनमें अधिकतर काव्यसंग्रह हैं। (Email - manoj_732003@yahoo.co.in)


- साहित्यकार लक्ष्मण राव

 

बाबरी मस्जिद कांड



बाबरी मस्जिद कांड भारत के इतिहास में बहुत बड़ी घटना है। राम जन्मस्थान व बाबरी मस्जिद की लड़ाई सदियों पुरानी है, यह इतिहास के पन्ने बताते हैं। बाबरी मस्जिद का सम्पूर्ण घटनाचक्र बहुत से तथ्य उजागर करता है। हम क्रमवार इसकी चर्चा करते हैं – 

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बाबरी मस्जिद का इतिहास

इतिहास के पृष्ठों में लिखा है कि सन 1600 में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। इतिहासकारों के पास इसकी निश्चित तारीख व अवधि नहीं है। परंतु सोलहवीं शताब्दी में बाबरी मस्जिद बनकर तैयार हो गयी थी। 

babri masjid history in hindi


हिंदुओं के ग्रन्थों में यह लिखा है कि सन 1200 में उसी स्थान पर श्री राम जी का मंदिर था। ऐसा हिन्दू संगठनों का मानना है। फिर मुग़ल सम्राट बाबर ने सन 1500 में हिंदुस्तान के अनेक रजवाड़े उजाड़ दिये और अपना प्रभुत्व जमाया। उस समय बादशाह बाबर ने मंदिरों को नष्ट करके मस्जिदों की स्थापना की, यह इतिहासकारों का कहना है और उसी काल में बाबरी मस्जिद की स्थापना हुई। यहाँ पर एक संशय का आभास होता है। वह यह कि कोई भी राजा या कोई भी सम्राट चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, वह कभी भी किसी धार्मिक स्थल की स्थापना अपने नाम से नहीं करेगा। परंतु इतिहासकारों ने इसका भी तोड़ निकाला। 

बाबर ने हिंदुस्तान की बहुत बड़ी भूमि जब अपने कब्ज़े में कर ली तब उसने अपनी सेना किसी नायक के अधीन करके उसके द्वारा आगे की लड़ाई जारी रखी। यह सोचकर उन्होंने एक सेना नायक नियुक्त किया। उस सेना नायक का नाम मीर बाँके था। मीर बाँके 1520 के बाद अपनी सेना अयोध्या ले गया और वहाँ पर सबसे पहले उन्होंने हिंदुओं के मंदिरों को नष्ट किया। मंदिरों को नष्ट करके मस्जिदों का निर्माण करते गए। उसमें से एक मस्जिद का नाम उसने अपने सम्राट बाबर के नाम पर रख दिया। इस तरह से वह बाबरी मस्जिद कहलाई जाने लगी। 

सन 1853 में इसी धर्मस्थल पर हिंदुओं और मुसलमानों का खूनी दंगा हुआ था। इसे आयोध्या कभी भूल नहीं सकता। परंतु इसी जगह पर 1855 तक हिन्दू पूजापाठ करते थे व मुसलमान भाई अपनी नमाज़ पढ़ते थे। इसके प्रमाण अंग्रेज़ों के समय के न्यायालयों ने संजो कर रखे थे। इसी आधार पर ब्रिटिश इतिहासकारों ने इतिहास भी लिख डाला।

हिन्दू और मुसलमान दोनों समुदाय जब एक ही स्थान पर प्रार्थना करने जाते थे तो लड़ाई-झगड़े भी होते थे और लाठियाँ भी चलती थीं। दोनों समुदायों के बीच वाद-विवाद समाप्त हो जाए, यह सोचकर अंग्रेज़ प्रशासन ने एक ही स्थान के दो भाग कर दिये, एक बाहरी भाग तथा एक आंतरिक भाग। अंदर के भाग में मुसलमान नमाज़ पढ़ते थे व बाहरी भाग में हिन्दू पूजापाठ करते थे। इस प्रकार का बंटवारा जब अंग्रेज़ों ने किया तो दोनों ही समुदायों ने इसे स्वीकार करके वर्तमान वाद-विवाद को समाप्त किया। 

कुछ समय तक सब ठीक-ठाक चलता रहा। पर हिंदुओं को यह अखरने लगा। उस समय अयोध्या में हिंदुओं के प्रमुख तथा मंदिर के महंत श्री रघुवीरदास थे। इनके नेतृत्व में सन 1885 में अंग्रेज़ न्यायालय में एक विनती पत्र दाखिल किया गया कि श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने की अनुमति दी जाए। यह केस एक वर्ष तक चलता रहा। 18 मार्च, 1886 को फैज़ाबाद के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने निर्णय देते हुए यह कहा कि – “हिंदुओं के पवित्र स्थान पर मस्जिद बनाना और उस पर आधिपत्य दिखाना, यह तो दुर्भाग्य की बात है। यह एक समुदाय के द्वारा दूसरे समुदाय पर किया जाने वाला अत्याचार है। किन्तु अब क्या किया जा सकता है? 360 वर्ष पहले जो घटना घट चुकी है उसके लिए बिना किसी प्रमाण के न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। इसलिए यह केस यहीं पर समाप्त किया जाता है।

फैज़ाबाद ज़िला न्यायालय का फैसला हिंदुओं ने स्वीकार नहीं किया और वाद-विवाद बढ़ता गया। बढ़ते हुए वाद-विवाद को देखकर मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद में नमाज़ पढ़ना बंद कर दिया। धीरे-धीरे समय बीतता गया और समय के साथ-साथ मुसलमानों का मस्जिद जाना बंद हो गया। 1949 तक अर्थात तेरह वर्ष तक जब मुसलमान मस्जिद को छोड़ चुके थे तब हिंदुओं ने सारी जगह अपने अधिकार में ले ली और विस्तार से पूजापाठ करना आरंभ किया।

जब हिंदुओं ने मस्जिद के स्थान पर श्री रामजी की मूर्ति की स्थापना की और पूजापाठ होने लगा तो मुस्लिम संगठन का भारतीय वक्फ बोर्ड सामने आया। बोर्ड के सदस्यों ने कहा – “यह जगह तो हमारे वक्फ बोर्ड की है। इस पर आपने रामजी की मूर्ति रख कर कब्ज़ा कैसे किया?”

इतिहासकारों का यह मानना है कि वह जगह भारतीय वक्फ बोर्ड की थी। अब प्रश्न इस बात का है कि वक्फ बोर्ड की स्थापना कब हुई और उस बोर्ड को मान्यता कब से मिली? इसके प्रमाण इतिहासकारों के पास थे। 

बहरहाल दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के प्रति वादी-प्रतिवादी केस दायर किया। उस समय संबंधित न्यायालय में परस्पर विचार-विमार्श करके केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया। क्योंकि दोनों समुदायों के लोग लड़ने- मरने को तैयार थे। ऐसी अवस्था में केंद्र सकरार ने दोनों ही पक्षों की जान-माल के हित की रक्षा करते हुए उस जगह को विवादित स्थान घोषित करके दरवाज़े को ताले लगा दिये। यह बात 1949 की है। जिस स्थान को गर्भगृह कहा जाता है उस स्थान के दरवाज़े पर ताले लगे हुए थे। उन तालों से कोई भी छेड़छाड़ न करे यह भी आदेश न्यायालय द्वारा दिया गया था। उस स्थान के बाहर ही पूजा-अर्चना करने की अनुमति थी।

इसी विवादित स्थान में जो 2.7 एकड़ भूमि है, उसमें निर्मोही आखाड़ा होने की पुष्टि की गयी। उसके लिए महंत श्री रघुनाथजी ने संबन्धित न्यायालय में एक अर्ज़ी दाखिल की कि निर्मोही आखाड़ा पंथ को पूजापाठ करने की अनुमति दी जाए। यह घटना 1959 की है। 

जब राम जन्मभूमि के समर्थक पूजापाठ करने लगे और निर्मोही आखाड़ा पंथ के सदस्य न्यायालय से बार-बार निवेदन करने लगे तो 1961 में उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड के सदस्यों ने न्यायालय में यह दावा किया कि बाबरी मस्जिद एवं उसके आसपास की भूमि पर मुसलमान समाज का कब्रिस्तान है। 

आगे राम जन्मभूमि हिन्दू संगठन, निर्मोही अखाड़ा पंथ एवं वक्फ बोर्ड, यह तीनों संगठन उत्तर प्रदेश के संबन्धित न्यायालय में अपने-अपने दावे बार-बार पेश करते रहे। इसकी सुर्खियां स्थानीय समाचारों में लगातार छपती रहीं। उसके बाद इस विवादित स्थान ने राजनीतिक रूप ले लिया। 

1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने के लिए उग्र आंदोलन शुरू किया। इसमें न्यायालय तक कार सेवकों को इकट्ठा करना, जगह-जगह भाषण-संभाषण करना, संबन्धित सरकारी कार्यालयों पर प्रदर्शन करना, यह जारी रहा। विश्व हिन्दू परिषद ने यह स्पष्ट किया कि “हमारी मांगे यह हैं कि जहां पर मस्जिद का निर्माण किया गया है वहाँ पर राम जन्मभूमि मंदिर था। उस मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद बनाई गयी और उस जगह पर मुस्लिम समाज अब किसी भी प्रकार का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। निवेदन है कि उस स्थान को हिंदुओं का धार्मिक पवित्र स्थान घोषित किया जाए।”

1986 में श्री हरीशंकर दुबे ने नयी याचिका तैयार करके फैज़ाबाद के न्यायालय में पेश की। फैज़ाबाद  न्यायालय के सत्र न्यायाधीश ने उस विवादित स्थान के ताले खोलकर हिंदुओं को पूजापाठ करने की अनुमति दे दी। विश्व हिन्दू परिषद ने सम्पूर्ण भारत में जयकारा घोषित किया। 

इसका विरोध करते हुए मुस्लिम समाज के अनेक संगठन संगठित हुए। मुस्लिम समाज ने उसी समय बाबरी मस्जिद के नाम से बाबरी मस्जिद कार्य समिति की स्थापना की। अब दोनों पक्षों की दलील सम्पूर्ण देश के समाचार पत्रों में प्रकाशित होने लगी। 

राजनैतिक दलों का हस्तक्षेप

1986 से लेकर 1988 तक हिन्दू विश्व परिषद ने भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) को लेकर बाबरी मस्जिद का मुद्दा देश की राष्ट्रीय राजनीति में लाकर खड़ा कर दिया। इससे सम्पूर्ण देश भर के छोटे-मोटे हिन्दू संगठन एकत्रित हुए। दूसरी तरफ अल्पसंख्यक मुसलमानों के दिलों को ठेंस पहुँचने लगी। 


अयोध्या राम मंदिर बाबरी मस्जिद

इसके बाद राम मंदिर एवं बाबरी मस्जिद के विवादित स्थान ने उग्र रूप धारण कर लिया। इसी का लाभ उठाते हुए संगठनों ने उसी वर्ष अर्थात 1989 में विवादित स्थान से थोड़ा हटकर राम जन्मभूमि की स्थापना करते हुए पूजा-अर्चना की। 

जब सारी घटनाएँ हिंदुओं के पक्ष में दिखाई देने लगीं तो विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष श्री देवकी नन्दन अग्रवाल ने न्यायालय में केस दायर किया कि राम जन्मभूमि स्थान से बाबरी मस्जिद को अन्य किसी स्थान पर स्थानांतरित किया जाए। 9 नवंबर, 1989 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस स्थान पर शिलान्यास करने की अनुमति दे दी। 

केंद्र सरकार की अनुमति मिलने के बाद यह कार्य एक पक्षीय दिखाई देने लगा। किन्तु मुसलमानों को यह अनुभव होने लगा कि हमारे धार्मिक स्थान एवं धार्मिक भावनाओं को कुचलने का प्रयास किया जा रहा है। 

1990 में विश्व हिन्दू परिषद के कुछ कार्यकर्ता मस्जिद परिसर में घुसकर तोड़फोड़ कर आए। इस पर मुस्लिम समाज ने आपत्ति की तथा सरकार व न्यायालय से यह अपील की कि हिन्दू और मुस्लिम समाज के बीच में खाई का निर्माण न हो इस पर भी उचित ध्यान देने का कष्ट करें। 

केन्द्रीय सरकार डावांडोल अवस्था में चल रही थी। मस्जिद और मंदिर की घटना चुनावी मुद्दे के स्वरूप राज्यों में होने वाले चुनावों में अपनी बढ़त बना चुकी थी। इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने रथयात्रा निकालने की योजना बना डाली। उस समय भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी थे। 

25 सितंबर, 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकली। पूरे देश भर में तनावपूर्ण वातावरण बन गया था। जब आडवाणी की रथयात्रा नवम्बर महीने में बिहार के समस्तीपुर पहुंची तो वहाँ पर बिहार सरकार ने इस रथयात्रा को रोक लिया। परंतु भारतीय जनता पार्टी को यह उम्मीद नहीं थी। क्योंकि उस समय देश के प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह थे। वी.पी. सिंह सरकार को भारतीय जनता पार्टी का समर्थन था। 

बिहार में आडवाणी का रथ रोक लिया गया और दो समुदायों में दंगा भड़काने के आरोप में आडवाणी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। आडवाणी की रथयात्रा समाप्त हो गयी। उसी समय भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति कार्यालय को वी.पी. सिंह सरकार को दिये समर्थन को वापस लेने का विनती पत्र दाखिल किया। दो दिन में वी.पी. सिंह सरकार बर्खास्त हो गयी। 

इसके बाद बाबरी मस्जिद एवं राम जन्मभूमि स्थान का विवाद बढ़ता ही गया। केंद्र की सरकार के लुढ़कने के बाद काँग्रेस ने अपना समर्थन देकर चन्द्रशेखर को प्रधानमंत्री बनाया। 

चन्द्रशेखर का कार्यकाल 10 नवंबर, 1990 से 21 जून, 1991 तक था। राम जन्मभूमि विवाद को बातचीत के आधार पर चन्द्रशेखर ने दोनों समुदायों के सदस्यों को एक बेंच पर बैठाकर हल करने का प्रयास किया। परंतु इसमें चन्द्रशेखर सफल नहीं हो पाए। भारतीय जनता पार्टी का चुनावी ग्राफ दिन -  प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। उसी वर्ष अर्थात 1991 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए और इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिल गया। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार स्थापित हो गयी। तब पूरा उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के ही हाथों में था। 

सन 1992 के आरंभ से ही विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता पार्टी तथा बाकी के जितने भी हिंदुवादी संगठन एवं छोटे-मोटे राजनीतिक दल थे, उन्होंने अपना-अपना वर्चस्व दिखते हुए डेरा डालने हेतु अयोध्या में प्रवेश करना आरंभ कर दिया। कुछ ही महीनों में बाबरी मस्जिद परिसर के आसपास हिन्दू संगठनों ने डेरा डाल दिया। 

अब सभी संगठनों ने बाबरी मस्जिद तोड़कर उसी स्थान पर श्री राम मंदिर बनाया जाए, इस प्रकार की योजनाएँ तैयार की और 6 दिसंबर को वही हुआ जिसके बारे में कभी सोचा नहीं जा सकता था। सभी कार सेवकों ने मिलकर बाबरी मस्जिद के गुंबद तोड़ डाले और सम्पूर्ण विश्व भर में इस घटना की चर्चा होने लगी। जिस समाज के जहां भी अल्पसंख्यक रहते थे, उन पर हमला किया गया - हिंदुओं द्वारा  मुसलमानों पर और मुसलमानों द्वारा हिंदुओं पर। उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार तथा देश की केन्द्रीय सरकार इन दोनों सरकारों को इस घटना के दोषी ठहराया गया। 

उस समय भारत के प्रधानमंत्री नरसिंह राव थे। इस घटना पर राव ने एक आयोग की स्थापना की। उस आयोग की अध्यक्षता एम.एस. लिबरहान करने लगे। परिस्थितिनुसार काँग्रेस का वोट बैंक घट गया और काँग्रेस सरकार के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गयी। प्रधानमंत्री थे श्री अटल बिहारी वाजपेयी। सन 2000 से देश भर में हिन्दू संगठन भारतीय जनता पार्टी के हित व पक्ष में काम करने लगे। जब भी 6 दिसंबर का दिन समीप आता तब हिन्दू संगठनों द्वारा राम मंदिर बनाने का उत्साह बनाया जाता। ऐसी अवस्था में पूरे देश में तनाव की स्थिति बन जाती। अटल बिहारी वाजपेयी ने हिन्दू संगठनों को अनुचित कार्य रोकने के आदेश दिये। साथ-साथ समझौते की पहल भी जारी रखी। सन 2002 में गुजरात के गोधरा में रेलगाड़ी पर हमला बोल दिया गया। उस गाड़ी में अयोध्या से कार सेवक आ रहे थे। 65 व्यक्तियों की मौत हो गयी। इस घटना को लेकर जातीय दंगे भी हुए। 

बहरहाल, बाबरी मस्जिद तोड़ने के बाद भारतीय केंद्र सरकार ने लिबरहान आयोग स्थापित किया था। वह आयोग समस्त प्रमाण संगठित करते हुए छानबिन कर रहा था। सन 1992 से लेकर सन 2009 तक आयोग ने किसी भी प्रकार का कोई निर्णय नहीं दिया। परंतु सत्रह वर्षों के बाद अपनी सम्पूर्ण रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंप दी। उस समय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी थे। एक दैनिक समाचार पत्र के अनुसार इस आयोग की अंतिम रिपोर्ट देने के लिए 50 बार समय बढ़ाने का निवेदन किया जाता रहा। 22 नवंबर, 2009 को इस आयोग की रिपोर्ट लीक हो गयी जिसमें यह प्रमाणित था कि बाबरी मस्जिद तोड़ने की पूर्व योजना भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा की जा रही थी। 

पश्चात 8 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने यह निर्णय लिया कि अयोध्या की विवादित जगह पर किसका अधिकार है, इसका निर्णय 24 सितंबर, 2010 को घोषित किया जाएगा। न्यायाधीश एस. यू. खान, न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल तथा न्यायाधीश डी. वी. शर्मा की बेंच ने पिछले साठ सालों से चले आ रहे इस विवाद के संबंध में अपना निर्णय सुरक्षित रखा। 

30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2.7 एकड़ ज़मीन को तीन बराबर भागों में बांटने का निर्णय दिया, जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर के लिए, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा वक्फ बोर्ड को देने का निर्देश दिया गया। परंतु इसके विरुद्ध की गयी अपील में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया और अब वही संकोच, धैर्य, सहिष्णुता के प्रश्न खड़े करके बाबरी मस्जिद या राम जन्मभूमि इन दो यथार्थों के लिए हिन्दू व मुसलमान वर्षों तक प्रतीक्षा करते रहेंगे, ऐसा ही भविष्य दिखाई दे रहा है।

यह भी माना जा रहा था कि न्यायालय तीन मामलों में निर्णय देगा, एक – क्या विवादित स्थल पर सन 1538 से पहले रामजी का मंदिर था? दूसरा - क्या बाबरी मस्जिद समिति की तरफ से 1961 में जो याचिका दायर की गयी थी वह उचित थी? तीन – क्या स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने अधिग्रहण के आधार पर अपने मालिकाना हक को मज़बूत किया है?

वर्ष बीतते रहेंगे और अनावश्यक प्रश्न खड़े होते रहेंगे। परंतु बुद्दिजीवि समाज को किसी भी वाद-विवाद से लगाव नहीं है। अपितु हिन्दू मुसलमान दोनों समुदायों के लोग एक साथ रहकर अपने राष्ट्र को आगे बढ़ाते रहें, इसी में समाज की भलाई है। 

धर्म के नाम पर राजनीति की जाती है। परंतु राजनीति करने वाला व्यक्ति दो समुदायों को क्यों लड़वाना चाहता है और बाबरी मस्जिद कांड जैसी घटनाएँ क्यों घटती हैं, इसकी परिकल्पना समुदायों को करनी चाहिए। धर्म की लड़ाई लड़कर न तो देश चलता है न घर चलता है। इसलिए इस प्रकोष्ठ में एकता न दिखाना और नेताओं के प्रलोभन में आना उचित नहीं है। हिन्दू-मुसलमान दोनों समाज समझते हैं कि चाहे धार्मिक स्थल दस बार उजाड़ दिये जाएँ, कुछ नहीं बिगड़ता। भारत देश के हिन्दू-मुसलमानों को कोई बाँट नहीं सकता। पर धर्मों के बीच में खाई पैदा करना इससे बड़ा धार्मिक अपराध और कोई नहीं हो सकता। 

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Have You Ever Been into a Love Triangle?



Love Beyond Social Confines is a poignant depiction of life of a beautiful girl Narmada who belongs to valley of Betul in Madhya Pradesh. Protagonist Babu is pursuing engineering from IIT, New Delhi. His parents want him to marry his childhood friend Varsha, a highly educated and sophisticated girl.
When Babu reaches his home in Bhopal during summer vacations, he meets Narmada and fall in love with her. Narmada also gradually seems to be falling in love with Babu, while on the other side Varsha doesn’t want to marry any other guy except Babu and she is quite jealous of Narmada. 

Meanwhile, Narmada’s guardians fix her marriage with Govardhan in their own caste. When Babu came to know this, fear of losing his love Narmada starts flourishing in his mind.

Now Babu is in a dilemma, whether to fight for his true love or to compromise his love for his parent’s happiness and marry Varsha. What will Babu do? Read on to find out.


love and friendship



1
In those days, I was pursuing my Engineering from I.I.T., Delhi. I only had a few more exams left for third year. 30th April was the last day for exams.
My parents lived in Bhopal. Our bungalow was at the Bairagarh Road. My father was a contractor for the construction of bridges and roads for past two decades and was mostly busy in contracts given by Madhya Pradesh Government.
He got a big tender in Betul valley last year. Around four hundred labourers were working together on daily basis and our company was growing persistently.
I was 22 years old and my parents were always discussing about my marriage. When they wanted to know my decision for the same, I gave them my consent. First they proposed Varsha’s name (our ex-neighbour Vermaji’s daughter) before me. She was pursuing M.A. in English Literature from Bhopal itself. We had good relations with Vermaji’s family for the past ten years. 
I and Varsha often used to play, hang around and eat together. For the past two years, she started to avoid confronting me. Whenever I asked the reason, she would smile and walk away.
Nearly six months ago, I met Varsha in a social programme in Bhopal. While talking to me, she asked my hostel’s address. After that, she even wrote some letters to me, but I did not reply for even a single time.
Once the exams got over, I started preparing to return to my home in Bhopal and wrote a letter to my mother and informed her. On the day of journey, I boarded an Express Train from New Delhi Railway Station at 7 in the morning and reached Bhopal Railway Station at 4 pm on the same day. Our car driver had come to receive me, by 5 pm, I was at home.
It was summer and was very hot. As soon as I reached patio our maid 'Jaanki' opened the door and greeted me. Drawing room cooler soothed my mind. I felt silence at home. Till now, Mom would have welcomed me with words - “Oh! Son, u came”.
I thought Mom would be sleeping in her room. I went to have bath and got dressed. Then Jaanki asked if she can serve the breakfast but I asked her to wake up Mom first.                    
She told me that Mom has gone to Betul Valley. It was being ten days since she was not at home. Jaanki said - “Ma’am has wrote a letter for you.”
I asked - “Where is that letter? Show me.”
She went to Mom’s room and I followed her. She picked up the letter lying on the table and handed it to me. I started reading the letter:
“Dear Babu (My Name),
I got to know that you are coming home from Delhi. I am leaving for Betul Valley due to some reason and have to stay there for few days. After reaching home, you too can come here.
Rest is fine.
Your Mom”
2
What could be the reason that Mom went to a lonesome place leaving her home behind? I was in a doubt after reading the letter.
Once I thought she might have been there because it was too hot here. But I guess I was wrong as it was mentioned in the letter that she had to leave due to some reason. It was better for me not to predict. I stood up to ask Jaanki and all of a sudden my eyes were stuck on some dresses hanging in the rack.
There were some beautifully designed green scarves, long skirts and loose blouses, and then I saw slippers and sandles. It seemed that we had some guest. All slippers and clothes were seemed to be of a young lady.
Mom used to keep the cupboard’s key below bed’s mattress. I took the keys from there and opened the cupboard and was surprised to see literature books. Meanwhile, Jaanki prepared the breakfast for me and asked me to come.
While eating I asked Jaanki if we had a guest at home. In a reply to this, she narrated a long story -
Last month Mom and Dad visited Betul Valley. My Mom met ‘Narmada’ over there. She is the granddaughter of our laborer’s supervisor. Narmada had pricked her leg on a thorn. When she tried to scratch it, pus oozed out and her foot swelled up. Mom got acquainted with this incident and brought Narmada along with her for the treatment.
Mom was fascinated by her playful, mercurial behavior, harmonic sweet voice, beauty, black eyes and long hair. Mom treated Narmada as her daughter on her cleanliness and way of living.
Mom loved the food she cooked and she became Mom’s family member in a very short span of time. Once Narmada expressed that she was missing Betul valley and would like to go there. Mom asked Narmada if she would like to come back to Bhopal.
“Definitely, only if Grandpa gives me permission to come”- said Narmada. That is why Mom personally went to see her off and she was with her for the past ten days.
Narmada was born and grown up in a labor family. Four years ago, her parents died in an accident during digging a mound of soil. It was a turning point of her life. On seeing her condition, a couple who were doctor by profession, gave her shelter. With this, she had notable changes in her way of living. Two years later, that couple shifted abroad and she again returned to her grandfather’s cottage.
I was amazed with this brief introduction of Narmada. After dinner, I lay down on bed and started thinking about Narmada.
‘Narmada’ - I have heard this name several times earlier as well. Undoubtedly, she was an innocent girl, but she was very beautiful and attractive too, I had heard so.

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3
Jaanki told about Narmada in a coquettish manner and actually whatever she had said was true. My guess was all correct.
I fell asleep thinking about Narmada and suddenly got awoke at 7 in the evening, got fresh and sat on a chair in patio. Jaanki prepared tea for me.
While handing over the cup she informed me that Varsha had called up when I was asleep and was asking about me if I am in Bhopal or not. She informed Varsha about my arrival.
Frequently writing letters and asking for me on telephone, it seemed that Varsha wanted a close relationship with me. She again called up at 10 o’clock while I was planning for the next. Varsha asked - “How are you Babu? When did you return?”
“I came this afternoon. I was asleep as I was tired.”  - I replied.
“Babu, come home tomorrow morning.” - She said.
I said - “Not sure for tomorrow, but will call you before when I have to come”. I hung up the receiver after saying this.
The moment I kept the receiver down, Jaanki came and said - “Babu, we have to go to Betul valley tomorrow. Ma’am would be waiting for us.”
I replied - “Fine, start packing for the journey.”
After having dinner, I tried to sleep again but my mind was bit distracted. ‘Narmada’ - I was fascinated by this name. Literally, I just heard of her but never saw her and another point to be noted that why Mom liked her so much?
Narmada would return because she had her belongings here, I thought.
Anyways, I slept thinking of her and woke up at 6 in the morning. Jaanki was busy in her work. I got ready and informed at Varsha’s home over telephone that I was visiting them.
At around 10o’clock, I took my car and went to Varsha’s home. When I reached her home, everyone - her parents, brother and she herself were present. With due respect, I met her parents while she was standing and peeping from behind the curtains of the door.
I said - “What are you doing there behind the door. Come here.” Her parents laughed on this. She did not come but sat inside the room.
For a few minutes, I had conversation with her parents along with tea. Then I went to Varsha's room. She was waiting for me and stood up as I entered. She greeted me with 'Hello' and I too replied saying ‘Hello’.
She was damn gorgeous. I gazed at childhood Varsha who was now an adult. She was the same Varsha who were at the heights of playfulness. She was the same Varsha who were once lean. But now she had a good curvaceous body. She was wearing a pink suit (traditional outfit of Indian women) and a long scarf.
When I beheld her, she asked - “What happened Babu?”
I grew conscious and said - “You are a grown up girl now and looking very pretty”.
She cut off my point and asked that why didn’t I reply to her letters.
I said - “I was busy in studies, so couldn’t reply”.
I saw the time, it was late. On seeing her temerity and impatience I said - “I should leave now, Jaanki would be waiting for me as we have to leave for Betul.”
“Oh! Yes, there is a girl - Narmada. She was there at your home as a guest. She seems to be very dangerous, be alert.” - She said all of a sudden on hearing Betul.
I asked her if she ever met her. She replied - “Yes, she is very dangerous. She looks clever, frightful by gestures, quarrelsome by behavior...”
I said - “This is not possible. I heard enough praises of her and most importantly, she has won Mom’s heart that Mom went to Betul along with her.”
Varsha said - “Dear, she definitely knows bewitchment.”
I replied - “Do not think so. She is an orphan and secondly, she is very innocent girl.”
It seemed that Varsha had developed disdainful intent towards Narmada. I did chit-chat with her some more time and returned home saying ‘See you again’.
Maid and driver were waiting for me. After breakfast and entrusting bungalow’s responsibility to Guard, we started our journey to Betul at around 2 pm. I myself drove the car and maid and driver sat on back seat.
It was too hot outside. The moment we were out of Bhopal, I increased the speed. Within four hours we were near Betul Valley. Now maid started guiding the way to construction site - “Construction site is not far away now.”                
I increased the speed further. I was impatient to see Narmada. How she would be like? How beautiful she would be? What would be her way of talking? I had all these questions in my mind throughout the journey.

4
We could see high dense alpines everywhere over there. It was 6 in the evening. There was a light cool breeze in the atmosphere.
As we reached closer, Jaanki gestured our arrival to the destination. I looked carefully and lower-downed the speed. I saw around 300 workers busy and 8-10 trucks were carrying out their work. Laborers’ shift usually ended at 5 pm, but they were still working. It seemed that construction work was on full swing.
I was driving according to maid's direction. We were bit gone ahead then all of a sudden Jaanki shouted - “See, Narmada is coming with two pots of water on her head.”
I suddenly put the brakes and started looking for her everywhere, but I could not see her.
I asked - “Where is she? Where is she coming from?”
Jaanki replied - “Oh! Look towards that hill. She is the only one who is coming from that side.”
The moment she said so, my eyes caught on Narmada. I got hypnotized by her glimpse. Round face, beautiful figure, as she was approaching closer, she seemed even more beautiful. She was wearing yellow bodice and green knee-length skirt and white scarf. Though she had very sober clothes but her adulthood was clearly seen emerging. She had her long hair on one side of the neck on thoraces. She had decency on her face. Overall, she was an attractive girl.
Gradually she disappeared between dense trees.
Jaanki interrupted - “Can we move now or will you keep staring?”
I drove to Narmada’s home. Really, she was an idol beauty and the praises I heard were no less.
She was already at home when we reached. I wanted to see her once more till the time I wanted to. But this could not happen.

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